जाग गये हैं देव हरि, हरित बृन्द्रा हरषाय।
सालिक ग्राम दुल्हा बने, दुल्हन तुलसी कहाय।।
बनी विवाहिता तुलसी, लाल चूनर परिधान।
तिथि एकादशी देव उठे, घर भरते धन धान।।
शुभ लगन शुरू हो गया, हुआ तुलसी विवाह।
रितु बसंती अब आ गया, बजने लगे शहनाय।।
बिटियाँ को वर ढुढ़ने कि, हि चिन्ता करते तात।
नींद पराई हो गयी, पलक न झपके रात।।
मंगल दिवस शुरू हुआ, सजन लगे बारात।
सिन्दूरी शाम कि मनहर, सुन्दर लगतीे प्रभात।।
कवयित्री. इंदु भोलानाथ मिश्रा
सान्ताक्रूज मुम्बई
बहुत बेहतरीन रचना ।।बधाई
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